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गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से क्यों बनाया जाता है गिरिराज पर्वत, इसके महत्व से जुड़ी ये बातें नहीं जानती होंगी आप

गोवर्धन पूजा आमतौर पर दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है और इस दिन गोबर की आकृति बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। आइए यहां इसके बारे में विस्तार से जानें कि इस पूजा में गाय के गोबर का महत्व क्या है और किस वजह से गोबर का पर्वत बनाया जाता है। 
Editorial
Updated:- 2025-10-13, 17:37 IST

गोवर्धन पूजा दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाने वाला एक शुभ त्योहार है। यह कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है कि भगवान श्री कृष्ण ने एक बार ब्रज वासियों को इंद्र के प्रकोप और बाहरी बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली में उठा लिया था। इससे ग्राम वासियों को जीवन दान मिला और तभी से भक्ति श्री कृष्ण का आभाव व्यक्त करने के लिए यह पर्व मनाते चले आ रहे हैं। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि भगवान कृष्ण को अन्न्कूल का 56 भोग चढ़ाया जाता है। भगवान कृष्ण के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भक्त विभिन्न शाकाहारी व्यंजन बनाकर और उन्हें अर्पित करके गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन या गिरिराज पर्वत की आकृति बनाई जाती है और उसकी की पूजा की जाती है। एक बड़ा प्रश्न जो हम सभी के मन में आता है वह यह है कि आखिर इस दिन गाय के गोबर से ही पर्वत की आकृति क्यों बनाई जाती है? आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इससे जुड़ी कई बातों के बारे में।

गोवर्धन पर्व की कहानी क्या है?

भागवत पुराण के अनुसार, कृष्ण जी ने एक बार अपने माता-पिता और वृंदावन के ग्रामीणों को भगवान इंद्र की पूजा की तैयारी करते हुए देखा। इंद्र को वर्षा के देवता के रूप में ग्राम वासी पूजते थे। उस समय कृष्ण जी ने ग्राम वासियों से कहा कि वो इंद्र की पूजा न करके गोवर्धन पर्वत की पूजा करें क्योंकि वही उन्हें कई बाधाओं से बचाता है। जो उनके जीविका का वास्तविक स्रोत है, जो उनके पशुओं के लिए उपजाऊ मिट्टी, आश्रय और चरागाह प्रदान करता है। उनकी बुद्धिमत्ता से मोहित होकर, ग्रामीण गोवर्धन पर्वत का सम्मान करने के लिए सहमत हो गए।

इस वजह से इंद्र को अनादर महसूस हुआ और उन्होंने बृज में मूसलाधार बारिश करने का फैसला किया, जिससे बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। ग्रामीणों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाने के लिए, भगवान कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया, जिससे ग्रामीणों और उनके पशुओं के लिए उसके नीचे एक आश्रय बन गया। इस उत्सव के दौरान, गायों की पूजा की जाती है क्योंकि कृष्ण जी को गायों से अत्यंत प्रेम था।

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cow dung significance for govardhan puja

गाय के गोबर से क्यों बनाया जाता है गोवर्धन पर्वत?

गोवर्धन के त्योहार के दिन लोग अपने घर में गाय के गोबर गोवर्धन पर्वत का निर्माण करते हैं और घर में विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती है। गोवर्धन में भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग भी लगाया जाता है। इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और कृष्ण जी के स्वरूप का निर्माण करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। चूंकि कृष्ण जी को गायों से अत्यंत प्रेम था और वो गायों की पूजा करते थे इसी वजह से आज भी गोवर्धन की आकृति गाय के गोबर से ही बानी जाती है। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि गाय का गोबर घर से किसी भी तरह की नकारात्मकता को दूर करता है, इसी वजह से इसका प्रयोग गोवर्धन बनाने में किया जाता है।  

पूजा के बाद गोवर्धन पर्वत का क्या किया जाता है?

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और शाम के समय पूरे गोबर को एक साथ इकठ्ठा करके गोवर्धन पर्वत का आकार दिया जाता है। शाम के साम्य इस पर्वत पर सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है और इसे उठाकर घर में मुख्य द्वार पर रखा जाता है। गाय के गोबर से बना पर्वत इस बात का संकेत देता है कि आपके घर के भीतर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का वास न हो सके। इस गोबर को सुखाकर आप हवन आदि में भी इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन भूलकर अभी इसे कूड़े में नहीं फेंकना चाहिए।

गोवर्धन पूजा के दिन गायों की पूजा, गोवर्धन महाराज की प्रतिमा का पूजन और अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा सदियों पुरानी है और इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
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